चिंतन
आज बड़े दिनों बाद कुछ लिखने का दिल कर रहा है इसलिए नहीं की मै खुद को अकेला महसूस कर रहा हूँ बल्कि इसलिए क्यूंकि आज एक बार फिर मानवता अपनी साड़ी सीमाओं को पार कर शर्मसार हुई है , एक बार फिर हम सब ये सोचने पर मजबूर हुए हैं की क्या हम जिस देश में रह रहे हैं क्या वाकई ये देश हमारे लिए पूरी तरेह से महफूज़ है? क्या कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला ये देश सचमुच आज अपनी घुलमि से आजाद है ? शायद नहीं!!! क्यूंकि आज इस देश में जो कुछ भी हुआ वो शायद गुलामी की जंजीरों से कहीं ज्यादा बदतर और खौफनाक है .
जी हाँ मै बात कर रहा हूँ देश के उस जघन्य कुकर्म की जिसकी शिकार एक मासूम हुई जिसका कसूर सिर्फ इतना था की वो किसी के घर की बेटी थी , उसका कसूर सिर्फ इतना था की वो एक ऐसे देश की महिला थी जहां एक ओर हम महिलाओं माँ का दर्ज़ा देते है , तो दूसरी ओर उन्हें भोग और विलास की वास्तु मात्र मानते हैं। मैं बात कर रहा हूँ देश की उस महँ वीरांगना की जो कुछ दरिंदो की दरिंदगी के आगे हार गयी , वो हार गयी इस सोच से की क्या हम इस देश में कभी भी महिलाओं को एक सम्मान भरा जीवन दे पायेंगे शायद इसका जवाब हम में से किसी के पास नहीं है .
ये वो वीरांगना थी जो ना तो किसी आज़ादी की लड़ाई की हिस्सेदार थी और ना ही इसने कभी ये सोचा था की इसके जीवन में कभी भी ऐसा मोड़ आएगा जहाँ इसे अपनी ज़िन्दगी का दामन इस तरह से छोड़ना पड़ेगा . मानवता को शर्मसार करने वाली ये घटना है दिल्ली की उस छात्रा की जो आम लोगों की तरह जिन चाहती थी कुछ करना चाहती थी पर किसे पता था की नियति को कुछ और ही मंज़ूर था , कौन जानता था की उसके जीवन में एक ऐसा भूचाल आने वाला है जो सिर्फ उससे ही नहीं बल्कि पुरे देश और समाज को हिल कर रख देगा .
आज वो वीरांगना हमारे बीच नहीं है पर उसने कई ऐसे सवाल खड़े किये हैं जो हमे ये सोचने पर मजबूर करते हैं की क्या ये वही संस्कार है जिन्हें पाकर बुद्ध और राम की ये धरती कभी पवन हुई थी , क्या ये वही संस्कार हैं जीने पाकर हम ये कहते हैं की हमारा भारत अतुल्निय है , शायद नहीं !!!!
इस वीरांगना की मृत्यु ने हमारी कानून व्यवस्था के साथ - साथ उन सौ करोड़ जनता को भी सवालों के घेरे में ल खड़ा किया है जहाँ ये सोचने की ज़रूरत है की क्या हम वही लोग है जो कभी द्रोपदी के चिर हरण को देख कर भाव बीभोर हो उठे थे शायद नहीं!!!!!!
इस महान योद्धा की मृत्यु ने आज ये साबित कर दिया की कहीं ना कहीं हम कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं, कहीं ना कहीं हमारी कानून व्यवस्था शिथिल होती जा रही है, कहीं ना कहीं हमारा समाज हमारी उस धरोहर को बचने में नाकाम होता जा रहा है जिसकी हम सब किसी ज़माने में पूजा किया करते थे। " यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते , रमन्ते तत्र देवता "
ये विचार सिर्फ अब किताबी बातें बन कर रह गयी हैं, लगता है हम वो सब भूल चुके हैं जहाँ हमने नारी एक अपमान पर पता नहीं महाभारत और रामायण जैसे कितने ग्रन्थ लिख डाले।
इन सारी बातों से हटकर आज हमे ये सोचने की सरुरत है की क्या हम अपने आने वाले कल को एक बेहतर और सभ्य समाज देने की कल्पना कर सकते हैं , क्या हम ये मान ले की आने वाले कल में ऐसे जघन्य अपराध नहीं होंगे, या फिर हम ये समझ ले की हमारा संविधान और हमारा क़ानून नपुंसक हो चूका है जो इस देश की उस धरोहर को बचाने में नाकामयाब है जिसे हम जननी , बहेन , बेटी , और पत्नी के रूप में देखते हैं।
आज वो वक़्त आ चूका है जब हम सब एक जुट होकर ये प्रण लें की हम ना सिर्फ कानून व्यवस्था बल्कि खुद के आचरण और सोच में भी एक बदलाव लायें और ये तभी संभव है जब हम ये समझ जायेंगे की औरत इश्वर का वो वरदान है जो हर कदम पर ना सिर्फ हमारे साथ होती है बल्कि हमारा स्तित्व भी उनकी वजह से ही है।
इसके साथ साथ यह भी ज़रूरी है की हम अपनी कानून व्यवस्था में बदलाव कर ना सिर्फ ऐसे अपराधियों को सजा दे बल्कि एक ऐसी मिसाल कायम करें की भविष्य कोई भी ऐसे अपराध करने से पहले सौ बार सोचे।
आज उस परिवार के बिच उनकी लाडली नहीं है लेकिन मुझे यकीं है की उन्हें इस बात का ग़म होने के साथ साथ इस बात का फक्र होगा की उनकी लाडली ने इस देश को फिर से जीने की एक वजह दी है। इस देश को ये सोचने पर मजबूर कर दिया है की क्या भविष्य में ऐसे अपराधों को रोकने के लिए कुछ सराहनीय कदम उठाए जा सकते हैं, शायद हाँ।
इस विरांगना को हम अपनी सची श्रधाञ्जलि तभी दे पायेंगे जब उन् पापियों को उनके किये की सजा मिलेगी और ना सिर्फ उन्हें बल्कि इस देश के हर उस पापी को जिसने जाने अनजाने कहीं ना कहीं मानवता और मातृत्व को शर्मसार करने का ऐसा जघन्य अपराध किया हो।
आज हम सब (मै भी ) उस शोक सन्तप्त परिवार के साथ हैं पर ये ज़रूरी है की ऐसा कोई भी परिवार दुबारा इस तरह के दुःख को दुबारा ना झेले और इस्सके लिए ये ज़रूरी है हम खुद को बदलें, कानून को बदलें और ऐसे नियम बनायें जहाँ हम गर्व से कह सकें की हाँ ये वहीँ देश है जहां नारियों को सम्मान की द्रष्टि से देखा जाता है वरना वो दिन दूर नहीं जब मानव का स्तित्व मिट जाएगा क्यंकि जब नारी ही नहीं होगी तो फिर हम ये कैसे कल्पना कर सकते हैं की हम इस दुनिया में जन्म लेंगे और कुछ करेंगे, इस्सलिये ये ज़रूरी है की हम आज इस पर चिंतन करें और इस्सके रोकथाम के लिए आगे आयें।
" मेरी बहादुर बहेन के जज्बे को सलाम , तुम कहीं रहो ना रहो मेरी यादों में हमेशा रहोगी "