तज़ुर्बे और रिश्ते
आज एक बार फिर मै अपने आप को दुनिया के सामने बौना समझने पर मजबूर हो गया क्यूंकि जब आप किसी चीज़ को गलत कर उससे ठीक करने की कोशिश करते हैं तो कहीं ना कहीं कुछ एक चीजें ऐसी होती हैं जिनके रहते वो ठीक तो क्या सामान्य भी नहीं हो पाती।
अब आप सोच रहे होंगे की मेरे जीवन में अब
ऐसा क्या हो गया जिसे लेकर इतना चिंतित हूँ, तो मै आपको पहले तो ये बता दूँ की मेरे जीवन की है वो बड़ी ही जटिल है और इसे समझने के लिए ना हीं आपके पास इतना समय है और ना ही उसे समझा पाने की मुझ में उतनी ताक़त।खैर , मुद्दे की बात ये है की जब हम कोई रिश्ता कायम करते हैं तो हम यह समझते हैं की हम इस रिश्ते को कभी कमज़ोर नहीं पड़ने देंगे और साथ ही साथ हमारी यह भी कोशिश रहती है की चाहे जितनी भी मुश्किलें हों हम उस रिश्ते को किसी भी हालत में संभाल लेंगे।
परन्तु जीवन यदि इतना आसान होता तो फिर इश्वर इसकी रचना कभी नहीं करता क्यूंकि हम हैं की इश्वर हमे कभी भी वो नहीं देता जो हम चाहते हैं बल्कि वो देता है जो होता है या फिर जिस में सबसे ज्यादा मेहनत होती है। मगर शायद कुछ लोग इस बात को सिर्फ इसलिए नहीं समझ पाते क्यूंकि जीवन का संघर्ष क्या है सही मायने में अगर देखा जाए तो वे इस बात को कभी नहीं समझ पाते और शायद इसीलिए उन्हें जीवन का वास्तविक स्वरुप दिखाई नहीं पड़ता क्यूंकि जीवन वो पहेली है जिसे जब तक उसके भीतर तक जाकर नहीं परखा जाए तब तक वो बस एक ही नज़र आता है.
मुझे इस विषय की बस इसलिए सूझी क्यूंकि जिन रिश्तों को हम तिनके - तिनके जोड़ कर बनाते हैं उन्हें एक छोटा सा हवा का झोका बिखेर कर रख देता है फिर चाहे वो हवाएं किसी भी किस्म की हों उन हवाओं को ये पता नहीं होता की जिन रिश्तों को उन्होंने अपने आगोश में एक झटके में ले लिया उन्हें संजोने और एक धागे में पिरोने में इंसान को कितनी म्हणत करनी पड़ी होगी और ये बात सिर्फ वो ही समझ सकते हैं जिन्होंने या तो रिश्तों को बिखरते या फिर टूटते देखा हो क्यूंकि कहते हैं ना की बारिश का एहसास लोगों को तभी होता है जब उनके खुद के घर की छत से पानी गिर रहा हो वर्ना दूसरों का बसा बसाया घर चाहे बह जाए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
जीवन के बारे में जितनी मेरी समझ है उन सब के अनुसार मै बस इतना ही समझ पाया हूँ की हम कहीं ना कहीं तजुर्बों के आगे झुक से गए हैं फिर चाहे वो तजुर्बा सही हो या गलत. यदि ये तजुर्बे सही हों तो ये वो कर सकते हैं जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की है परन्तु यदि येही तजुर्बे गलत हो तो ये उस विनाश के परिचायक हैं जिनकी उम्मीद ना तो हम कभी कर सकते हैं और ना कभी कर पायेंगे। इसलिए ये बहुत ज़रूरी है की जिन रिश्तों को हमने इतनी मेहनत से खड़ा किया उन्हें इन चंद बेबुनियाद तजुर्बों से कतई बर्बाद ना करें। हमे कोई हक नहीं बनता रिश्तों को बनाने का यदि हम उन्हें संभल ना पायें तो।
कहने का सार सिर्फ इतना है की कोई भी रिश्ता तजुर्बों के आधार पर बनाया तो नहीं जाता मगर यदि यही रिश्ते गलत तजुर्बों के आधार पर या फिर उन्हें ढाल बना कर तोड़ दिए जाएँ तो सचमुच कहीं ना कहीं ये सोचने की ज़रूरत है की हमारे रिश्ते हमारे तजुर्बों के आगे छोटे पड़ते जा रहे हैं और अगर समय रहते हमने अपने तजुर्बों का इस्तेमाल सही जगह पर नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं जब हम रिश्तों के मेले में तजुर्बों के मदारी के आगे सिर्फ मौन नृत्य कर रहे होंगे और शायद हमे देखने वाला कोई भी ना होगा।
मेरा लिखने का प्रयोजन सिर्फ इतना है जो इंसानी रिश्ते हमारे या आपके गलत तजुर्बों से बर्बाद हो रहे हैं उन्हें बचाने की ज़रूरत है वरना ईश्वर के जिस बहुमूल्य वरदान के हम आज अधिकारी है कहीं ऐसा ना हो की कुछ एक लोगों की वजेह से या फिर उनकी बातों में आकर हम उन् रिश्तों को ख़त्म कर दें जो हमने इतनी मेहनत से खड़े किये हैं.
ये कुछ लोग आपके बिच से हो सकते हैं और दोनों (रिश्ते और तजुर्बों ) को बचाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है की हम विश्वास की डोर को टूटने ना दें क्यूंकि ये जीवन का वो अमूल्य साधन है जहाँ से किसी भी रिश्ते की शुरुआत होती है और जिस दिन ये टूट गया यकीन कीजिये हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पायेंगे इसलिए यह ज़रूरी है की विश्वास करने वाला और भरोसा जितने वाला दोनों ही इनको ध्यान में रखें और अगर नहीं तो हमे ये सोचना होगा की क्या इस धरा पर ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिन पर हम अपना भरोसा दिखाएँ अगर नहीं तो धिक्कार है हमारी ऐसी मानवता पर जिस पर हम इतना इतराते हैं, धिक्कार है हमारी मनुष्यता पर हमसे कही अच्छा तो वो कुक्कुर हैं जो जानवर ही सही मगर कम से कम समय आने पर अपने मालिक से वफादारी तो करता है.
मित्रों, मेरा कहना सिर्फ इतना है की हम लोगों पर विश्वास करें बिलकुल करें लेकिन कभी भी उनके भरोसे को तोड़े नहीं क्यूंकि भरोसा ही वो जरिया है जिनके सहारे हम जीवन के हर मझधार को हँसते हँसते पार कर जाते हैं और जिस दिन ये भरोसा टूट जाता है तो वो तूफ़ान में खड़े उस नाव की तरह होता है जिसे खुद खुद भी नहीं बचा सकता इसलिए विश्वास और विश्वासी ये दोनों जीवन में बड़े बहुमूल्य है और येही किसी भी रिश्ते का आधार होता है.
इसलिए मेरा आप सबों से अनुरोध है की चाहे कोई भी बात हो , समस्या हो आप उन्हें ही बताएं जो आप भरोसा करते हों और आप उन् पर और साथ ही साथ यह भी देखे की ये भरोसे कभी टूट ना पायें क्यूंकि टूटे बर्तन तो हम जोड़ लेंगे मगर रिश्ते और भरोसे एक बार टूट गए तो फिर कभी नहीं जुड़ेंगे जितनी चाहे कोशिश कर लो।
रहीम ने अपने दोहे में भी कहा है की:
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ो चटकाए
टूटे से फिर ना जुड़े और जुड़े गाँठ पद जाये.
जिस दिन हम इन शब्दों के अर्थ को समझ जायेंगे यक़ीनन हम ये समझ लेंगे की रिश्ते कितने नाज़ुक होते हैं और जिस दिन हम ये जान गए यकीन कीजिये हम सब एक बेहतर रिश्ते कायम करने में कामयाब हो जायेंगे।
इसलिए लोगों का भरोसा मत टूटने दीजिये और इस भरोसे को जितना चाहे मजबूत बनाईए ।
बहुत -बहुत स्नेह और प्रेम के साथ
आपका एस.के.
आज एक बार फिर मै अपने आप को दुनिया के सामने बौना समझने पर मजबूर हो गया क्यूंकि जब आप किसी चीज़ को गलत कर उससे ठीक करने की कोशिश करते हैं तो कहीं ना कहीं कुछ एक चीजें ऐसी होती हैं जिनके रहते वो ठीक तो क्या सामान्य भी नहीं हो पाती।
अब आप सोच रहे होंगे की मेरे जीवन में अब
परन्तु जीवन यदि इतना आसान होता तो फिर इश्वर इसकी रचना कभी नहीं करता क्यूंकि हम हैं की इश्वर हमे कभी भी वो नहीं देता जो हम चाहते हैं बल्कि वो देता है जो होता है या फिर जिस में सबसे ज्यादा मेहनत होती है। मगर शायद कुछ लोग इस बात को सिर्फ इसलिए नहीं समझ पाते क्यूंकि जीवन का संघर्ष क्या है सही मायने में अगर देखा जाए तो वे इस बात को कभी नहीं समझ पाते और शायद इसीलिए उन्हें जीवन का वास्तविक स्वरुप दिखाई नहीं पड़ता क्यूंकि जीवन वो पहेली है जिसे जब तक उसके भीतर तक जाकर नहीं परखा जाए तब तक वो बस एक ही नज़र आता है.
मुझे इस विषय की बस इसलिए सूझी क्यूंकि जिन रिश्तों को हम तिनके - तिनके जोड़ कर बनाते हैं उन्हें एक छोटा सा हवा का झोका बिखेर कर रख देता है फिर चाहे वो हवाएं किसी भी किस्म की हों उन हवाओं को ये पता नहीं होता की जिन रिश्तों को उन्होंने अपने आगोश में एक झटके में ले लिया उन्हें संजोने और एक धागे में पिरोने में इंसान को कितनी म्हणत करनी पड़ी होगी और ये बात सिर्फ वो ही समझ सकते हैं जिन्होंने या तो रिश्तों को बिखरते या फिर टूटते देखा हो क्यूंकि कहते हैं ना की बारिश का एहसास लोगों को तभी होता है जब उनके खुद के घर की छत से पानी गिर रहा हो वर्ना दूसरों का बसा बसाया घर चाहे बह जाए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
जीवन के बारे में जितनी मेरी समझ है उन सब के अनुसार मै बस इतना ही समझ पाया हूँ की हम कहीं ना कहीं तजुर्बों के आगे झुक से गए हैं फिर चाहे वो तजुर्बा सही हो या गलत. यदि ये तजुर्बे सही हों तो ये वो कर सकते हैं जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की है परन्तु यदि येही तजुर्बे गलत हो तो ये उस विनाश के परिचायक हैं जिनकी उम्मीद ना तो हम कभी कर सकते हैं और ना कभी कर पायेंगे। इसलिए ये बहुत ज़रूरी है की जिन रिश्तों को हमने इतनी मेहनत से खड़ा किया उन्हें इन चंद बेबुनियाद तजुर्बों से कतई बर्बाद ना करें। हमे कोई हक नहीं बनता रिश्तों को बनाने का यदि हम उन्हें संभल ना पायें तो।
कहने का सार सिर्फ इतना है की कोई भी रिश्ता तजुर्बों के आधार पर बनाया तो नहीं जाता मगर यदि यही रिश्ते गलत तजुर्बों के आधार पर या फिर उन्हें ढाल बना कर तोड़ दिए जाएँ तो सचमुच कहीं ना कहीं ये सोचने की ज़रूरत है की हमारे रिश्ते हमारे तजुर्बों के आगे छोटे पड़ते जा रहे हैं और अगर समय रहते हमने अपने तजुर्बों का इस्तेमाल सही जगह पर नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं जब हम रिश्तों के मेले में तजुर्बों के मदारी के आगे सिर्फ मौन नृत्य कर रहे होंगे और शायद हमे देखने वाला कोई भी ना होगा।
मेरा लिखने का प्रयोजन सिर्फ इतना है जो इंसानी रिश्ते हमारे या आपके गलत तजुर्बों से बर्बाद हो रहे हैं उन्हें बचाने की ज़रूरत है वरना ईश्वर के जिस बहुमूल्य वरदान के हम आज अधिकारी है कहीं ऐसा ना हो की कुछ एक लोगों की वजेह से या फिर उनकी बातों में आकर हम उन् रिश्तों को ख़त्म कर दें जो हमने इतनी मेहनत से खड़े किये हैं.
ये कुछ लोग आपके बिच से हो सकते हैं और दोनों (रिश्ते और तजुर्बों ) को बचाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है की हम विश्वास की डोर को टूटने ना दें क्यूंकि ये जीवन का वो अमूल्य साधन है जहाँ से किसी भी रिश्ते की शुरुआत होती है और जिस दिन ये टूट गया यकीन कीजिये हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पायेंगे इसलिए यह ज़रूरी है की विश्वास करने वाला और भरोसा जितने वाला दोनों ही इनको ध्यान में रखें और अगर नहीं तो हमे ये सोचना होगा की क्या इस धरा पर ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिन पर हम अपना भरोसा दिखाएँ अगर नहीं तो धिक्कार है हमारी ऐसी मानवता पर जिस पर हम इतना इतराते हैं, धिक्कार है हमारी मनुष्यता पर हमसे कही अच्छा तो वो कुक्कुर हैं जो जानवर ही सही मगर कम से कम समय आने पर अपने मालिक से वफादारी तो करता है.
मित्रों, मेरा कहना सिर्फ इतना है की हम लोगों पर विश्वास करें बिलकुल करें लेकिन कभी भी उनके भरोसे को तोड़े नहीं क्यूंकि भरोसा ही वो जरिया है जिनके सहारे हम जीवन के हर मझधार को हँसते हँसते पार कर जाते हैं और जिस दिन ये भरोसा टूट जाता है तो वो तूफ़ान में खड़े उस नाव की तरह होता है जिसे खुद खुद भी नहीं बचा सकता इसलिए विश्वास और विश्वासी ये दोनों जीवन में बड़े बहुमूल्य है और येही किसी भी रिश्ते का आधार होता है.
इसलिए मेरा आप सबों से अनुरोध है की चाहे कोई भी बात हो , समस्या हो आप उन्हें ही बताएं जो आप भरोसा करते हों और आप उन् पर और साथ ही साथ यह भी देखे की ये भरोसे कभी टूट ना पायें क्यूंकि टूटे बर्तन तो हम जोड़ लेंगे मगर रिश्ते और भरोसे एक बार टूट गए तो फिर कभी नहीं जुड़ेंगे जितनी चाहे कोशिश कर लो।
रहीम ने अपने दोहे में भी कहा है की:
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ो चटकाए
टूटे से फिर ना जुड़े और जुड़े गाँठ पद जाये.
जिस दिन हम इन शब्दों के अर्थ को समझ जायेंगे यक़ीनन हम ये समझ लेंगे की रिश्ते कितने नाज़ुक होते हैं और जिस दिन हम ये जान गए यकीन कीजिये हम सब एक बेहतर रिश्ते कायम करने में कामयाब हो जायेंगे।
इसलिए लोगों का भरोसा मत टूटने दीजिये और इस भरोसे को जितना चाहे मजबूत बनाईए ।
बहुत -बहुत स्नेह और प्रेम के साथ
आपका एस.के.